Wednesday, November 25, 2015

देव दीपावली

भगवान शिव की नगरी काशी में आज शाम दुनिया के सबसे बड़े जल-ज्योति पर्व यानी देव दीपावली के लिए लोग उमड़ पड़े। शाम होते ही काशी के 84 गंगा घाट करीब 51 लाख से अधिक दीपों की जगमग ज्योति से झिलमिला उठे। इससे मां गंगा के गले में करीब आठ किलोमीटर लंबा ज्योति-पुंज चंद्रहार जगमगाने लगा। इससे पहले यहां आए लोगों ने सुबह से ही गंगा में पुण्य स्नान कर काशी के विविध मंदिरों में पूजन-अर्चन किया। 
देव दीपावली की पृष्ठभूमि पौराणिक कथाओं से भरी हुई है। इस कथा के अनुसार भगवान शंकर ने देवताओं की प्रार्थना पर सभी को उत्पीडि़त करने वाले राक्षस त्रिपुरासुर का वध किया, जिसके उल्लास में देवताओं ने दीपावली मनाई, जिसे आगे चलकर देव दीपावली के रूप में मान्यता मिली। 
इसी संदर्भ में एक अन्य कथानक भी है। 
त्रिशंकु को राजर्षि विश्वामित्र ने अपने तपोबल से स्वर्ग पहुँचा दिया। देवतागण इससे उद्विग्न हो गए और त्रिशंकु को देवताओं ने स्वर्ग से भगा दिया। शापग्रस्त त्रिशंकु अधर में लटके रहे। त्रिशंकु को स्वर्ग से निष्कासित किए जाने से क्षुब्ध विश्वामित्र ने पृथ्वी-स्वर्ग आदि से मुक्त एक नई समूची सृष्टि की ही अपने तपोबल से रचना प्रारंभ कर दी। 
उन्होंने कुश, मिट्टी, ऊँट, बकरी-भेड़, नारियल, कोहड़ा, सिंघाड़ा आदि की रचना का क्रम प्रारंभ कर दिया। इसी क्रम में विश्वामित्र ने वर्तमान ब्रह्मा-विष्णु-महेश की प्रतिमा बनाकर उन्हें अभिमंत्रित कर उनमें प्राण फूँकना आरंभ किया। सारी सृष्टि डाँवाडोल हो उठी। हर ओर कोहराम मच गया। हाहाकार के बीच देवताओं ने राजर्षि विश्वामित्र की अभ्यर्थना की। 
महर्षि प्रसन्न हो गए और उन्होंने नई सृष्टि की रचना का अपना संकल्प वापस ले लिया। देवताओं और ऋषि-मुनियों में प्रसन्नता की लहर दौड़ गई। पृथ्वी, स्वर्ग, पाताल सभी जगह इस अवसर पर दीपावली मनाई गई। यही अवसर अब देव दीपावली के रूप में विख्यात है।

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