Saturday, October 15, 2016

Adalpura Sheetla Mata Temple

Sheetla mata Temple is situated in Adalpura, 5 km from Chunar, on the banks of the holy river Ganges. It is one of the most revered Shakti peeths of the presiding deity, Sheetla Devi. The temple is visited by large number of peoples daily. Big congregations are held during Navratras in Chaitra (April) and Ashwin (October) months. Adalpura Sheetla Mata Temple is 25 km from Varanasi, adalpura is a renowned religious place dedicated to Goddess Sheetla. 

Friday, October 14, 2016

Sita Samahit Sthal (Sitamarhi)

Sita Samahit Sthal (Sitamarhi), the holy place of Sitamarhi is situated between Allahabad and Varanasi, near the national highway No. 2 and also connected with Allahabad and Varanasi railway line with Jungiganj, the nearest railway station. It is a well known Hindu pilgrimage and a good tourist spot with a lot of tourists almost throughout the year.
It is said that this temple is the place where Sita went into the earth when she willed it while she was living with Saint Valmiki in the forest of Sitamarhi. It was Saint Valmiki who wrote Ramayana. According to Ramayana when Lord Rama came to Sita to ask her to come with him. According to Ramayana and other sacred books of Hindu dharma, when Lord Rama returned from the grand victory on Ravana the powerful king of Lanka. After becoming the king of Ayodhya a big yaga was held by Lord Rama and the horse of that grand yagya Ashvamedha was released from Ayodhya, the horse was to move in any direction or in any kingdom, the king of that kingdom should have to declare Rama as his Emperor. When the horse was wandering in the jungle of now Baripur village of Sant Ravidas Nagar, the two sons of Sita captured the horse according to the declaration that was tagged on the forehead of the horse. All the great warriors of Lord Rama Including Laxman, Bharat, Saturghna, Sugreev, Nal-Neel were defeated in the fierce battle between the two Lav and Kush the most powerful Hanuman was tied by them. At last the great Rama had to come to that place to fight the two children whom no one accepted Sita and the saint Valmiki. No one knew that both boys are the prince of Ayodhaya and the son of Rama. When Rama came to the battlefield, all the holy souls of the three world comes to see the rare scene and Sita also comes to Lord Rama and said with folded palm that she served with Her all efforts and love and it was time to end this human life (note human life because they were God and Goddess) after she asked Her mother (the earth) to take her into her lap. She left behind Her two sons Luv and Kush whom Lord Rama took to the Ayodhya empire.












सीता समाहित स्थल (सीतामढ़ी)

सीता समाहित स्थल (सीतामढ़ी) मंदिर संत रविदास नगर जिला में स्थित है। यह मंदिर इलाहबाद और वाराणसी के मध्य स्थित जंगीगंज बाज़ार से ११ किलोमीटर दूर गंगा के किनारे स्थित है। मान्यता है की इस स्थान पर माँ सीता से अपने आप को धरती में समाहित कर लिया था। यहाँ पर हनुमानजी की ११० फीट ऊँची मूर्ति है जिसे विश्व की सबसे बड़ी हनुमान जी की मूर्ति होने का गौरव प्राप्त है। स्वामी जितेंद्रानंद जी के असीम प्रयास से और श्री प्रकाश नारायण पुंज की मदद से ये स्थान पर्यटक स्थल के रूप में उभर कर आया है।












Wednesday, October 12, 2016

नाटी इमली का भरत-मिलाप

चित्रकूट की लीला अश्विन कृष्ण नवमी से होता है। मुकुट पूजन के बाद राज्याभिषेक की तैयारी से लीला आरम्भ होती है। इन लीलाओं में नाटी इमली में बाल भरत-मिलाप सबसे महत्वपूर्ण होता है। इसमें भूतपूर्व काशी नरेश भी सम्मिलित होते हैं। भरत-मिलाप एक संक्षिप्त लीला या झाँकी मात्र है। इसमें राम-जानकी एवं लक्ष्मण बनवासी वेश में एक मंच पर खड़े रहते हैं, उनके आगमन को सुनकर भरत जो राम के समान ही तपस्वी वेश में हैं तथा शत्रुघ्न आते हैं और राम के चरणों पर गिर जाते हैं। राम एवं लक्ष्मण उन्हें उठाते हैं तथा चारों परस्पर मिलते हैं। तत्पश्चात पाँचों स्वरुपों को विमान या रथ पर बिठाकर ढोया जाता है। विमान को काशी के व्यापारी वर्ग इस विश्वास से ढोते हैं कि उनका व्यापार अच्छा चलेगा। ऐसा विश्वास किया जाता है कि भरत-मिलाप के समय मेधाभगत को स्वरुपों में साक्षात भगवान के दर्शन हुए थे। आज भी क्षण भर के लिए स्वरुपों में इश्वरत्व आ जाता है, ऐसा विश्वास है।
जिस दिन अर्थात विजयादशमी के दूसरे दिन, नाटी इमली का भरत-मिलाप होता है उस दिन यहाँ के सम्मान में काशी के अन्य स्थलों की रामलीला बन्द रहती है। काशी नरेश के उपस्थित होने के बाद ही नाटी इमली का भरत-मिलाप होता है। यहाँ भरत-मिलाप गोधूलि-बेला में सम्पन्न होता है।
यद्यपि भरत-मिलाप एक झाँकी मात्र है जो केवल पाँच मिनट में समाप्त हो जाती है, परन्तु इसे देखने के लिए अपार जन समूह एकत्र होता है। रामलीला प्रांगण एवं आस-पास के छतों पर विशाल जन समूह दिखाई पड़ता है। आज के दिन भीड़ नियन्त्रण की व्यवस्था प्रशासन करता है। 
विश्व प्रसिद्ध भरत मिलाप ,जो वाराणसी में नाटी इमली भरतमिलाप मैदान में सम्पूर्ण होती हैं। बनवास पूरी कर चारों भाई आपस में मिलते है, जहां सूर्य भगवान की लालिमा चारों भाइयों के मुख पर पड़ता हैं।























Tuesday, October 11, 2016

भगवान राम के पैरों के चिन्ह

बिहार के बक्सर जिले में लोग भगवान राम के पैरों के चिन्ह की पूजा करते हैं। गंगा किनारे स्थिति रामरेखा घाट के बगल में एक मंदिर में भगवान राम के पैरों के चिन्ह मौजूद हैं।